माँ भारती के अमर गायक राष्ट्रकवि डॉ० मैथिलीशरण गुप्त का जन्म चिरगाँव में ३ अगस्त १८८६ को हुआ ! उनके पिता श्री रामशरण गुप्त चिरगांव (झाँसी) के प्रतिष्ठित एवं संपन्न व्यवसायी थे ! बारह वर्ष की अल्पावस्था में गुप्त जी ने अपने पिता की कॉपी में एक छप्पय लिखा , जिसकी सराहना उनके पिता जी ने एवं अन्य लोगों ने भी की ! ‘सरस्वती’ पत्रिका में उनकी पहली कविता सन १९०५ में “हेमंत” शीर्षक से छपी ! गाँधी जी के व्यक्तित्व से वे सर्वाधिक प्रभावित हुए उन्होंने चरखा चलाना प्रारंभ किया और स्वतंत्रता आन्दोलन में कूद पड़े व सात माह आगरा जेल में भी रहे ! ‘अजित’ और ‘क्रनालगीत’ उनकी जेल जीवन की कृतियाँ हैं ! सन १९१२ में अंग्रेज़ी शासन द्वारा उनकी प्रसिद्ध कृति भारत-भारती को प्रतिबंधित कर दिया ! सन १९९२ तथा १९५८ में दो बार राज्य सभा के सदस्य मनोनीत किये गए ! ७८ वर्ष की अवस्था में १२ दिसम्बर १९६४ को ह्रदय गति रुक जाने के कारण उनका देहांत हो गया !
वे राष्ट्रभाषा हिंदी के अनन्य सेवक एवं प्रवल पछधर थे ! साहित्यकारों के बीच ‘दददा’ नाम से चर्चित थे ! गुप्त जी अपने आत्मियत्ता , स्नेह , एवं मृदुवचनों से सबको आकर्षित करते थे ! उनकी साहित्यिक सेवा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन हेतु १९४८ में आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की ! गुप्त जी को उनकी प्रशिद काव्य कृति ‘साकेत’ पर उस समय का सर्वश्रेष्ठ मंगलाप्रसाद पारितोषित प्रदान किया गया ! उन्हें पदम् विभूषण से भी अलंकृत किया गया !
गाँधी जी द्वारा उन्हें “मेथलीमान ग्रन्थ” तथा राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद द्वारा “अभिनन्दन ग्रन्थ” भेंट किया गया ! उदार मानवतावाद ही उनकी द्रढ़ आधार रहा है ! गुप्त जी ने लगभग ४० कृतियाँ लिखी हैं ! जिनमें प्रमुख हैं – जयद्रथ वध (१९१०), भारत-भारती (१९१२), पचवटी (१९२५), झंकार (१९२९), साकेत (१९३१), यशोधरा (१९३२), द्वापर (१९३६), जय भारत (१९५२), और विष्णुप्रिया (१९५७) !
इसके अतिरिक्त अन्य रचनाएँ – ‘रंग में भंग’ , सिद्धराज , पथ प्रबन्ध , बैतालिक , किसान , इन्होने तीन नाटक भी लिखे हैं – ‘तिलोत्तमा’ , ‘चंद्रहास’ , और ‘अनध’ ! गुप्त जी ने राष्ट्रीय चेतना , सामाजिक जागृती और नैतिक मूल्यों पर वल देते हुए अपनी रचनायों से जन मन को प्रेरित करने का स्तुलय प्रयास किया !
‘अजित’ और ‘क्रनालगीत’ उनकी जेल जीवन की कृतियाँ हैं ! सन १९१२ में अंग्रेज़ी शासन द्वारा उनकी प्रसिद्ध कृति भारत-भारती को प्रतिबंधित कर दिया ! सन १९९२ तथा १९५८ में दो बार राज्य सभा के सदस्य मनोनीत किये गए ! ७८ वर्ष की अवस्था में १२ दिसम्बर १९६४ को ह्रदय गति रुक जाने के कारण उनका देहांत हो गया !
वे राष्ट्रभाषा हिंदी के अनन्य सेवक एवं प्रवल पछधर थे ! साहित्यकारों के बीच ‘दददा’ नाम से चर्चित थे ! गुप्त जी अपने आत्मियत्ता , स्नेह , एवं मृदुवचनों से सबको आकर्षित करते थे ! उनकी साहित्यिक सेवा के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन हेतु १९४८ में आगरा विश्वविद्यालय ने उन्हें डी.लिट्. की मानद उपाधि प्रदान की ! गुप्त जी को उनकी प्रशिद काव्य कृति ‘साकेत’ पर उस समय का सर्वश्रेष्ठ मंगलाप्रसाद पारितोषित प्रदान किया गया ! उन्हें पदम् विभूषण से भी अलंकृत किया गया !
गाँधी जी द्वारा उन्हें “मेथलीमान ग्रन्थ” तथा राष्ट्रपति डॉ० राजेंद्र प्रसाद द्वारा “अभिनन्दन ग्रन्थ” भेंट किया गया ! उदार मानवतावाद ही उनकी द्रढ़ आधार रहा है ! गुप्त जी ने लगभग ४० कृतियाँ लिखी हैं ! जिनमें प्रमुख हैं – जयद्रथ वध (१९१०), भारत-भारती (१९१२), पचवटी (१९२५), झंकार (१९२९), साकेत (१९३१), यशोधरा (१९३२), द्वापर (१९३६), जय भारत (१९५२), और विष्णुप्रिया (१९५७) !
इसके अतिरिक्त अन्य रचनाएँ – ‘रंग में भंग’ , सिद्धराज , पथ प्रबन्ध , बैतालिक , किसान , इन्होने तीन नाटक भी लिखे हैं – ‘तिलोत्तमा’ , ‘चंद्रहास’ , और ‘अनध’ ! गुप्त जी ने राष्ट्रीय चेतना , सामाजिक जागृती और नैतिक मूल्यों पर वल देते हुए अपनी रचनायों से जन मन को प्रेरित करने का स्तुलय प्रयास किया !